Why the Northeast (Ishanya) Corner is Sacred in Vastu

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Life Path Number 1 Meaning: Traits, Challenges & How to Succeed

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Life Path Number 1 Meaning: Traits, Challenges & How to Succeed

Life Path Number 1 is the number of strength, courage and new beginning. Want to know if you are born to be a leader? Then this is your number. You do not wait, you act.

7 Surprising Benefits of Letting Someone Else Read Your Tarot Cards

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7 Surprising Benefits of Letting Someone Else Read Your Tarot Cards

Tarot is a powerful tool. It helps people understand life, feelings, and choices. Many people read cards for themselves. That’s a good thing.

A Guide to the Suit of Wands – Tarot Card Meanings for Love, Career, and Life

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A Guide to the Suit of Wands – Tarot Card Meanings for Love, Career, and Life

Tarot’s Suit of Wands concerns energy, movement, and expansion. It brings to light your passion and drive inside to move you towards love, professional success, and self-improvement.

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विवाह संस्कार - ज्योतिषीय पृष्ठभूमि व सिद्धिदायक उपाय

विवाह गृहस्थ आश्रम अर्थात वंशवृक्ष की वाटिका में प्रवेश करने का प्रथम सोपान है। इस मधुर सौभाग्य की प्राप्ति हेतु हर युवा स्वप्न की कल्पनाओं में सर्वदा लीन रहता है। परंतु कल्पनाओं के इस क्रम में कुछ ऐसे सौभाग्यशाली हैं जिनकी ये आशाएं पूर्ण हो जाती हैं तो कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने संपूर्ण जीवन में इस सुख का सौभाग्य नहीं मिलता। यदि मिला भी तो उनके जीवन में वैवाहिक संबंध की यह प्रक्रिया अधिक दिनों तक यथावत नहीं रह पाती। इसके अतिरिक्त इस क्रम में कुरूप, कृपण, अपंग आदि जैसी त्रासदियों से पीड़ित ही नहीं अपितु अपराधी प्रवृत्तियों से जुड़े तत्वों के भी उदाहरण हैं जिन्हें विवाह संस्कार के सौभाग्य से वंचित रहना तो बहुत दूर बल्कि उन्हें अनेक विवाहों अर्थात अनेक पति या अनेक पत्नियों के संयोग को भी प्राप्त करते हुए देखा गया है। यहां तक कि इस परिप्रेक्ष्य में सामाजिक व वैधानिक नियम भी टूटते देखे गए हैं।

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विवाह-संतान घर-गृहस्थी टोटके

- अशुभ ग्रहों का उपाय कर लेना अनिवार्य होता है। खास कर पुरुषों को तो केतु का उपाय करने ही चाहिए, क्योंकि विवाह के बाद पुरुष के ग्रहों का संपूर्ण प्रभाव स्त्री पर पड़ता है। ग्रहों के उपाय निम्नलिखित हैं:

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विवाहादि शुभ मुहूर्त : महत्व, साधन एवं दोष परिहार

विवाह मेलापक एवं मुहूर्त साधन जैसे शुभ कार्यों में अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता होती है। छोटी सी असावधानी अनेक प्रकार के दोषों का सृजन करती है। प्रस्तुत लेख में कुछ ऐसे ही दोषों एवं उनके परिहार की विधि बताई गई है।

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विवाहार्थ कुण्डली मिलान विशेष विचार कर कीजिये

विवाह के लिए कुंडली मिलाना कठिन कार्य अवष्य है गुण मिलान के अलावा किन विषेष बातों पर विचार किया जाना चाहिए इसका विवरण इस लेख में दिया गया है। मांगलिक दोष के प्रभाव पर भी प्रकाष डाला गया है।

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विविध वैवाहिक समस्याएं व समाधान

प्रश्न: विवाह न होना या देरी से होना, विवाह के पश्चात जीवन सुखी न रहना, तलाक हो जाना या बिना तलाक के अलग हो जाना, वैवाहिक जीवन नित्य प्रति क्लेशपूर्ण रहना जैसी समस्याओं हेतु क्या वैदिक, तांत्रिक, आध्यात्मिक, लाल किताब के उपाय तथा घरेलू टोटकों के द्वारा वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है? यदि हां ! तो विस्तृत जानकारी दें।

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शनि व मंगल की वैवाहिक सुख में भूमिका

जातक या जातिका की जन्मकुंडली से विवाह संबंधी सूचना कुंडली के द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करने से मिलती है। द्वितीय भाव परिवार का द्योतक है तथा पति पत्नी परिवार की मूल इकाई हैं। सातवें भाव से अष्टमस्थ होने के कारण विवाह के प्रारंभ व अंत का ज्ञान देकर यह भाव अपनी भूमिका महत्वपूर्ण बनाता है। अक्सर यह देखा गया है कि प्रायः पापयुक्त द्वितीय भाव विवाह से वंचित रखता है। सप्तम भाव से तो विवाह सुख से संबंधित अनेक तथ्यों का पता चलता ही है। द्वादश भाव भी शैय्या सुख, पति-पत्नी के बीच दैहिक संबंधों के लिए विचारणीय है। स्त्रियों की कुंडली का विचार करते समय सौभाग्य का ज्ञान देने वाले अष्टम भाव का भी अध्ययन करना चाहिए। शुक्र को पुरूष व बृहस्पति को स्त्री के विवाह सुख का कारक ग्रह माना जाता है, जबकि प्रश्नमार्ग के अनुसार स्त्रियों के विवाह का कारक ग्रह शनि है। बृहस्पति और शनि पर विचार करने के साथ-साथ शुक्र पर भी अवश्य विचार करना चाहिए। वैवाहिक विलंब में शनि की भूमिका शनि सभी नवग्रहों में धीरे चलने वाला ग्रह है। यह अपनी एक परिक्रमा लगभग 30 वर्ष में पूर्ण करता है। इसकी इसी मंद गति के कारण फलादेश में भी जब किसी स्थान पर इसकी स्थिति या दृष्टि होती है तब उस स्थान से संबंधित फल को मंद कर देना इसका स्वभाव है। जब सप्तम स्थान पर इस ग्रह की स्थिति या दृष्टि प्रभाव होता है तब यह विवाह में विलंब का कारण स्वयं बनता है। इसीलिए वैवाहिक विलंब में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका है। आगे शनि के कारण विवाह में विलंब के कुछ योग दिये जा रहे हैं।

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शादी के समय का निर्धारण

जातक के विवाह का संभावित काल ज्योतिष द्वारा कैसे निकाला जा सकता है? अपने नियमों को दी गयी कुंडली पर लागू करते हुए विवाह का संभावित समय निकालें। जन्म- विवरण: 11 जुलाई 1964, 21ः30 बजे, प्रतापगढ़, यू. पी

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शादी के समय निर्धारण में सहायक योग

विवाह संबंधी प्रश्न पर विचार करते समय सर्व प्रथम कुंडली में सातवें भाव, सप्तमेश, लग्नेश, शुक्र एवं गुरु की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिये। विवाह के लिये सप्तम भाव है। सप्तमेश को देखना इसलिये आवश्यक है क्योंकि यही इस भाव का स्वामी होता है। शुक्र इस भाव का कारक है। स्त्री/पुरूष दोनों के लिये शुक्र वैवाहिक सुख के लिये संबंधित ग्रह है। स्त्रियों के लिए गुरु पति सुख देने वाला ग्रह है।

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शादी बचपन में या 55 में

ज्योतिषीय विधान में विवाह कार्य की सिद्धि हेतु जन्म कुण्डली के सप्तम भाव तथा कारक ग्रह को देखा जाता है। लेकिन कुंडली में द्वितीय तथा एकादष भाव भी विवाह में महत्वपूर्ण होते हैं। जन्म कुंडली का सप्तम भाव जीवनसाथी तथा साझेदारी का होता है। यह अन्य व्यक्तियों के साथ व्यक्ति के सम्बंध को दर्षाता है। विवाह सम्बंधी विषय में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विवाह सम्बंधी शुभता का विचार एकादष भाव से किया जाता है । द्वितीय भाव कुटुम्ब तथा परिवार को दर्षाता है। पंचम भाव का भी विषेष महत्व है यदि विवाह में प्रेम प्रसंग भी शामिल हो।

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शादी में देरी: कारण-निवारण

वैवाहिक जीवन सुखमय बीते इसके लिए शादी से पहले गुण मिलान के साथ-साथ ग्रह मिलान भी आवश्यक है। कन्या की कुंडली में विवाह कारक बृहस्पति होता है और पुरूष की कुंडली में विवाह का विचार शुक्र से किया जाता है। यदि दोनों ग्रह शुभ हों और उनपर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो विवाह का योग जल्दी बनता है।

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शादी में मंगल की भूमिका

हमारे देश में विवाह (शादी) के समय वर-वधू की कुंडली में मंगलीक-दोष का बहुत विचार किया जाता है। आमतौर पर मंगल के वर के लिए मंगल की वधू ठीक समझी जाती है अथवा गुरु और शनि का बल देखा जाता है। मांगलिक दोषानुसार पति या पत्नी की मृत्यु का होना माना जाता है। इस योजना के अपवाद भी हैं- लग्न में मेष, चतुर्थ में वृश्चिक, सप्तम में मकर, अष्टम में कर्क तथा व्यय भाव में धनु राशि में मंगल हो तो यह मंगल वैधव्य योग अथवा द्विभार्या योग नहीं करता।

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शीघ्र विवाह के अचूक उपाय

घर में कलह होने का एक कारण युवा संतानों का समय से विवाह न होना भी है। आज लड़कियों के लिए उचित वर ढूंढते-ढूंढते माता-पिता का दिन का चैन और रातों की नींद छिन जाती है तो अच्छी पत्नी की तलाश में लड़के भी अपनी उम्र बढ़ाते चले जाते हैं। इस सबके बीच लोगों की तानेबाजी तनाव बढ़ाने में आग में घी का काम करती है। इस आलेख में शीघ्र विवाह के अनुभूत उपाय दिए जा रहे हैं...